मीडिया की भूमिका
क्या ये विश्वास करने योग्य है ?
आशारामजी बापू के केस में समाज को भ्रमित करने में मीडिया ने अहम भूमिका निभायी। 2013 में जब बापूजी पर अनर्गल आरोप लगे तब देश में चल रहे सभी महत्त्वपूर्ण मुद्दों से दरकिनार कर फॉरेन फंडेड मीडिया ने 24 घंटे डिबेट व मीडिया ट्रायल द्वारा बापूजी की छवि को धूमिल करने का भरसक प्रयास किया। बापूजी को बदनाम करने के लिए मीडिया ने एक नाबालिग बच्ची को भी नहीं बक्शा। गुरुग्राम की एक बच्ची के विडियो को तोड़-मरोड़कर अश्लील तरीके से समाज के सामने परोसा। इस कारण दीपक चौरसिया, चित्रा त्रिपाठी, अजीत अंजुम समेत 8 लोगों पर भारतीय दंड संहिता की धारा 120बी (आपराधिक साजिश), 469, 471 (जालसाजी), सूचना एवं प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 67 बी (बच्चे को ऑनलाइन उत्पीड़ित करना) एवं 67 (इलेक्ट्रॉनिक रूप में अश्लील सामग्री को प्रकाशित या प्रसारित करना) और पॉक्सो एक्ट की धारा 23 (मीडिया द्वारा पीड़ित बच्चे की पहचान जाहिर करना) एवं 13 सी (अश्लील प्रयोजनों के लिए बच्चों का उपयोग करने) के तहत मामला दर्ज किया गया है और वर्तमान में विभिन्न धाराओं के साथ पॉक्सो 14 (1) अश्लील प्रयोजनों के लिए नाबालिग बच्चों का उपयोग करने हेतु दंड) के तहत न्यायालय ने प्रथम दृष्ट्या अपराधी माना है। आश्रम पर आरोप लगाने वाले भोलानंद ने बाद में जाहिर में माफी माँगी व बताया कि मीडिया वाले उसे रुपये, बँगले, गाड़ी आदि का लालच देकर आशारामजी बापू के खिलाफ बोलने के लिए मजबूर किया करते थे।

क्या ऐसी मीडिया पर भरोसा करेंगे आप ?
जो कोई मीडियाकर्मी अथवा मीडिया संस्थान सत्य एवं लोकहित प्रिय है उसको तो हम धन्यवाद देते हैं।