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न्यायालय इस बात को क्यों नहीं सोच रहा है...
संत आशारामजी बापू को आज तक पैरोल नहीं मिला यह देखकर मन में बहुत पीड़ा होती है। संविधान के आर्टिकल 21 में स्पष्ट लिखा है कि भारत के हर नागरिक को अच्छा जीवन जीने का, रोग के अनुसार उपचार कराने का पूरा अधिकार है और उसे यह अधिकार उपलब्ध करवाना चाहिए। किंतु मुझे आश्चर्य होता है कि बापूजी के केस में न्यायालय इस बात को क्यों नहीं सोच रहा है ! बापूजी के अधिकारों की रक्षा होनी चाहिए ।
संतोष दुबे - अधिवक्ता, उच्च न्यायालय

केस में कोई दम नहीं है...
कानूनी रूप से देखो तो संत आशारामजी बापू के खिलाफ किये गये केस में कोई दम नहीं है। क्यों बापूजी की जमानत नहीं हो रही है और गुनहगारों की हो रही है, राजनेताओं की हो रही है ? बापूजी पर अन्याय और अत्याचार यह हिन्दू धर्म पर अत्याचार है ।
संजिव पुनालकर - अधिवक्ता, राष्ट्रीय सचिव, हिन्दू विधिज्ञ परिषद

मानवाधिकारों का हनन...
पैरोल एक कैदी का मौलिक अधिकार है। यह मौलिक अधिकारों का घोर उल्लंघन है जब इसे चुनिंदा रूप से आतंकवादियों को बिना किसी समस्या के दिया जाता है लेकिन आशाराम बापू जैसे हिंदू संत को नहीं ।
संजय दीक्षित - अधिवक्ता, आईएएस (आर), लेखक


.. तो आशाराम बापूजी निर्दोष सिद्ध हो जाते
तत्कालीन DCP अजयपाल लांबा ने एक किताब लिखी है, इस किताब में उन्होंने जो वर्जन दिया है, अगर वह कोर्ट में मान लिया जाता है तो आशाराम बापूजी जाते हैं और यह सिद्ध हो जाता है कि आशाराम बापूजी को जानबूझकर फँसाया गया है। फिर और बयानों में बड़ा contradiction ( विरोधाभास) है।
डीके दुबे - लीगल एडवाईजर


आप भी खतरे में...
आशाराम बापू के लोग जरूर इस जजमेंट को चैलेंज करें और उनके साथ जो अन्याय हुआ है उसे हाईकोर्ट समझे और इस जजमेंट को set aside ( रद्द) करें लेकिन साथ ही सब लोग इस जजमेंट पर आवाज़ उठायें क्योंकि अगर यह अन्याय आज आशाराम बापू के साथ हुआ है तो कल आप में से किसी और के साथ भी हो सकता है क्योंकि अगर कोई जजमेंट नज़ीर बनती है तो उसी नज़ीर को आगे चलकर दूसरे कोर्ट भी फॉलो करते हैं ।
कीर्ति आहुजा - अधिवक्ता, सर्वोच्च न्यायालय


आशारामजी बापू को जो सजा दी गई है वो गलत दी गई है ।
आशारामजी बापू का केस झूठा और फर्जी है । आने वाले समय में यह बात सामने आएगी कि उनको जो सजा दी गई है वो गलत दी गई है।
विष्णु शंकर जैन - अधिवक्ता, उच्चतम अदालत

आशारामजी बापू एक षड्यंत्र के शिकार हुए हैं...
मैंने FIR देखी है, मेडिकल रिपोर्ट देखी है, जो बयान हुए हैं; उनको पढ़ा है। उसके आधार पर मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि केस बिल्कुल बनावटी है, केस में फँसाया गया है ।
हरिशंकर जैन - अधिवक्ता, सर्वोच्च न्यायालय


आशारामजी बापू के मौलिक अधिकारों का हनन..
खूँखार गुनहगारों को भी मौलिक अधिकारों के नाम पर बेल मिल सकती है तो आशारामजी बापू के मौलिक अधिकारों का हनन नहीं किया जाना चाहिए ।
अश्विनी उपाध्याय - अधिवक्ता, उच्चतम अदालत


उन्हें न्याय नहीं मिल पाया..
कोरोना काल में सबको छोड़ा गया, बड़े-बड़े हार्डकोर क्रिमिनल्स को छोड़ा गया, हाईपावर कमेटी, मा. सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन थी, ऑनरेबल हाईकोर्ट की गाइडलाइन थी लेकिन बापू आशारामजी को नहीं छोड़ा गया और आप बात करते हैं जस्टिस फॉर ऑल !
एपी सिंह - अधिवक्ता, सर्वोच्च न्यायालय


21वीं सदी का सबसे बड़ा अन्याय...
सार बात यह है कि आशाराम बापू के खिलाफ बलात्कार का फर्जी मामला है । लगभग 87 वर्ष की उम्र में जब उनकी अपील उच्च न्यायालय में लम्बित है तो उन्हें जमानत देने से इन्कार करना मानवाधिकार और कानून की आपराधिक अवहेलना है । बोगस केस ।
सुब्रमण्यम स्वामी - अभारत के पूर्व कानून व न्यायमंत्री
